संचार और माॅडेल.....
पृथ्वी पर मानव सभ्यता के साथ जैसे-जैसे संचार प्रक्रिया का विकास होता गया, वैसे-वैसे संचार के प्रारूपों का भी। अत: संचार का अध्ययन प्रारूपों के अध्ययन के बगैर अधूरा माना जाता है। समाजिक विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, संचार शास्त्र, प्रबंध विज्ञान इत्यादि के अध्ययन, अध्यापन व अनुसंधान में प्रारूपों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। समाज वैज्ञानिकों व संचार विशेषज्ञों ने अपने-अपने समय के अनुसार संचार के विभिन्न प्रारूपों का प्रतिपादन किया है। सामान्य अर्थों में हिन्दी भाषा के च्प्रारूपज् शब्द से अभिप्राय रेखांकन से लिया जाता है, जिसे अंग्रेजी भाषा रूशस्रड्डद्य में कहते हैं।
पृथ्वी पर मानव सभ्यता के साथ जैसे-जैसे संचार प्रक्रिया का विकास होता गया, वैसे-वैसे संचार के प्रारूपों का भी। अत: संचार का अध्ययन प्रारूपों के अध्ययन के बगैर अधूरा माना जाता है। समाजिक विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, संचार शास्त्र, प्रबंध विज्ञान इत्यादि के अध्ययन, अध्यापन व अनुसंधान में प्रारूपों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। समाज वैज्ञानिकों व संचार विशेषज्ञों ने अपने-अपने समय के अनुसार संचार के विभिन्न प्रारूपों का प्रतिपादन किया है। सामान्य अर्थों में हिन्दी भाषा के च्प्रारूपज् शब्द से अभिप्राय रेखांकन से लिया जाता है, जिसे अंग्रेजी भाषा रूशस्रड्डद्य में कहते हैं।
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार- च्प्रारूप से अभिप्राय किसी वस्तु को उसके लघु रूप में प्रस्तुत करना है।ज् प्रारूप वास्तविक संरचना न होकर उसकी संक्षिप्त आकृति होती है। जैसे- पूरी दुनिया को बताने के लिए छोटा सा च्ङ्गलोबज्। किसी सामाजिक घटना अथवा इकाई के व्यवहारिक स्वरूप को बताने के लिए अनुभव के सिद्धांत के आधार पर तैयार की गई सैद्धांतिक परिकल्पना को प्रारूप कहते हैं। दूसरे शब्दों में- प्रारूप किसी घटना अथवा इकाई का वर्णन मात्र नहीं होता है, बल्कि उसकी विशेषताओं को भी प्रदर्शित करता है। प्रारूप के माध्यम से व्यक्त की जाने वाली जानकारी या सूचना, वास्तविक जानकारी या सूचना के काफी करीब होता है। इस प्रकार, प्रारूप देखने में भले ही काफी छोटा होता है, लेकिन अपने अंदर वास्तविकता की व्यापकता को समेटे होता है। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने प्रारूप को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है :-
- प्रारूप प्रतीकों एवं क्रियान्वित नियमों की एक ऐसी संरचना है, जो किसी प्रक्रिया के अस्तित्व से सम्बन्धित बिन्दुओं के समानीकरण के लिए संकल्पित की जाती है।
- प्रारूप संचार यथा- घटना, वस्तु, व्यवहार का सैद्धान्तिक तथा सरलीकृत प्रस्तुतिकरण है।
- किसी घटना, वस्तु अथवा व्यवहारात्मक प्रक्रिया की चित्रात्मक, रेखात्मक या वाचिक अभिव्यक्ति का प्रारूप है।
- प्रारूप एक ऐसी विशेष प्रक्रिया या प्रविधि है, जिसे किसी अज्ञात सम्बन्ध अथवा वस्तुस्थिति की व्याख्या के लिए संदर्भ बिन्दु के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
एक तरफा संचार प्रारूप
(One-way Communication Modal)
संचार का यह प्रारूप तीर की तरह होता है, जिसके अंतर्गत संचारक अपने सदेश को सीधे प्रापक के पास प्रत्यक्ष रूप से सम्प्रेषण करता है। इसका तात्पर्य यह है कि एक तरफ संचार प्रारूप के अंतगर्त केवल संचारक अपने विचार, जानकारी, अनुभव इत्यादि को सूचना के रूप में सम्प्रेषित करता है। उपरोक्त सूचना के संदर्भ में प्रापक अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है अथवा प्रतिक्रिया करता है तो संचारक उससे अंजान रहता है। एक तरफा संचार प्रक्रिया की परिकल्पना सर्वप्रथम हिटलर और रूजवेल्ट जैसे तानाशाह शासकों ने की, लेकिन इसका प्रतिपादन २०वीं शताब्दी के तीसरे दशक के दौरान अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों ने किया। अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग ने कार्ल होवलैण्ड की अध्यक्षता में अस्त्र परिचय कार्यक्रम का मूल्यांकन करने के लिए गठित मनोवैज्ञानिकों की एक विशेष कमेटी ने अपने अध्ययन के द्वारा पाया कि संचारक द्वारा प्रत्यक्ष रूप से सम्प्रेषित संदेश का प्रापकों पर अधिक प्रभाव पड़ता है। इस अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट 1949 में प्रकाशित हुई। इसको अद्यो्रलिखित रेखाचित्र द्वारा समझा जा सकता है :-
इस प्रारूप से स्पष्ट है कि सूचना का प्रवाह संचारक से प्रापक तक एक तरफा होता है, जिसमें संचार माध्यम मदद करते हैं। रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र इत्यादि की मदद से सूचना का सम्प्रेषण एक तरफा संचार का उदाहरण है। इस प्रारूप का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें सूचना के प्रवाह को मात्र संचार माध्यमों की मदद से दर्शाया गया है, जबकि समाज में सूचना का प्रवाह बगैर संचार माध्यमों के प्रत्यक्ष भी होता है।
दो तरफा संचार प्रारूप
(Two- way Communication Modal)
संचार के इस प्रारूप में संचारक और प्रापक की भूूमिका समान होती है। दोनों अपने-अपने तरीके से संदेश सम्प्रेषण का कार्य करते हैं। प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने बैठकर संदेश सम्प्रेषण के दौरान रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र जैसे संचार माध्यमों की जरूरत नहीं पड़ती है। दो तरफा संचार प्रारूप में संचारक और प्रापक को समान रूप से अपनी बात कहने का पर्याप्त अवसर मिलता है। संचारक और प्रापक के आमने-सामने न होने की स्थिति में दो तरफा संचार के लिए टेलीफोन, मोबाइल, ई-मेल, एसएमएस, ई-मेल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, चैटिंग, अंतर्देशीय व पोस्टकार्ड जैसे संचार माध्यम की जरूरत पड़ती है। इसमें टेलीफोन, मोबाइल, ई-मेल व एसएमएस, ई-मेल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स व चैटिंग अत्याधुनिक संचार माध्यम है, जिनका उपयोग करने से संचारक और प्रापक के समय की बचत होती है, जबकि अंतर्देशीय व पोस्टकार्ड परम्परागत संचार माध्यम है, जिसमें संचारक द्वारा सम्प्रेषित संदेश को प्रापक तक पहुंचने में पर्याप्त समय लगता है। समाज में दो तरफा संचार माध्यम के बगैर भी होता है। पति-पत्नी, गुरू-शिष्य, मालिक-नौकर इत्यादि के बीच वार्तालॉप की प्रक्रिया दो तरफा संचार का उदाहरण है।
उपरोक्त प्रारूप से स्पष्ट है कि सूचना का प्रवाह संचारक से प्रापक की ओर होता है। समय, काल व परिस्थिति के अनुसार संचारक और प्रापक की भूमिका बदलती रहती है। संचारक से संदेश ग्रहण करने के उपरान्त प्रापक जैसे ही अपनी बात को कहना शुरू करता है, वैसे ही वह संचारक की भूमिका का निर्वाह करने लगता है। इसी प्रकार उसकी बात को सुनते समय संचारक की भूमिका बदलकर प्रापक की हो जाती है।
लॉसवेल मॉडल (Lasswell’s model)
हेराल्ड डी. लॉसवेल अमेरिका के प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री हैं, लेकिन इनकी दिलचस्पी संचार शोध के क्षेत्र में थी। इन्होंने ने सन् १९४८ में संचार का एक शाब्दिक फार्मूला प्रस्तुत किया, जिसे दुनिया का पहला व्यवस्थित प्रारूप कहा जाता है। यह फार्मूला प्रश्न के रूप में था। लॉसवेल के अनुसार- संचार की किसी प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे बेहतर तरीका निम्न पांच प्रश्नों के उत्तर को तलाश करना। यथा-
- कौन (who)
- क्या कहा (says what)
- किस माध्यम से (in which channel),
- किससे (To whom) और
- किस प्रभाव से (with what effect)।
इसे निम्नलिखित रेखाचित्र के माध्यम से समझा जा सकता है :-
इन पांच प्रश्नों के उत्तर से जहां संचार प्रक्रिया को आसानी से समझे में सहुलित मिलती है, वहीं संचार शोध के पांच क्षेत्र भी विकसित होते हैं, जो निम्नांकित हैं :-
1. Who Communicator Analysis संचारकर्ता विश्लेषण
2. Saya what Massige Analysia अंतर्वस्तु विश्लेषण
3. In Which channel Mediam Analysis माध्यम विश्लेषण
4. To whom Audience Analysis श्रोता विश्लेषण
5.with what effect Impact Analysis प्रभाव विश्लेषण
हेराल्ड डी. लॉसवेल ने शीत युद्ध के दौरान अमेरिका में प्रचार की प्रकृति, तरीका और प्रचारकों की भूमिका विषय पर अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि आम जनता के विचारों, व्यवहारों व क्रिया-कलापों को परिवर्तित या प्रभावित करने में संचार माध्यम की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसी आधार पर लॉसवेल ने अरस्तु के संचार प्रारूप के दोषों को दूर कर अपना शाब्दिक संचार फार्मूला प्रस्तुत किया, जिसमें अवसर के स्थान पर संचार माध्यम का उल्लेेख किया। लॉसवेल ने अपने संचार प्रारूप का निर्माण बहुवादी समाज को केंद्र में रखकर किया, जहां भारी संख्या में संचार माध्यम और विविध प्रकार के श्रोता मौजूद थे। हेराल्ड डी. लॉसवेल ने अपने संचार प्रारूप में फीडबैक को प्रभाव के रूप में बताया है तथा संचार प्रक्रिया के सभी तत्त्वों को सम्मलित किया है।
लॉसवेल फार्मूले की सीमाएं : स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी, शिकागो के सदस्य रह चुके हेराल्ड डी.लॉसवेल का फार्मूले को संचार प्रक्रिया के अध्ययन की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय लोकप्रियता मिली है। इसके बावजूद संचार विशेषज्ञों इसे निम्नलिखित सीमा तक ही प्रभावी बताया है :-
- लॉसवेल का फार्मूला एक रेखीय संचार प्रक्रिया पर आधारित है, जिसके कारण सीधी रेखा में कार्य करता है।
- इसमें फीडबैक को स्पष्ट रूप से दर्शाया नहीं गया है।
- संचार की परिस्थिति का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
- संचार को जिन पांच भागों में विभाजित किया गया है, वे सभी आपस में अंत:सम्बन्धित हंै।
- संचार के दौरान उत्पन्न होने वाले व्यवधान को नजर अंदाज किया गया है।
ऑसगुड-श्राम का संचार प्रारूप (OSGOOD-SCHRAMM’S MODAL OF COMMUNICATION)
संचार का SMCR प्रारूप (SMCR MODAL OF COMMUNICATION)
इस मॉडल को चाल्स ई.ऑसगुड ने प्रतिपादित किया है। आपको बता दें कि ऑसगुड एक मनोभाषा विज्ञानी थे। इस मॉडल को उन्होंने साल-1954 में प्रतिपादित किया। इस मॉडल के अनुसार संचार गत्यात्मक और परिवर्तनशील होता है, जिसमें शामिल होने वाले संचारक और प्रापक इनकोडिंग औग डिकोडिंग के साथ-साथ संदेश की व्याख्या भी करते हैं। इस मॉडल के अनुसार संचारक एक समय ऐसा आता है जब संचारक की भूमिका बदलकर प्रापक की हो जाती है तो वहीं प्रापक की भूमिका बदलकर संचारक की हो जाती है। अत: संचारक और प्रापक दोनों को व्याख्याकार की भूमिका निभानी पड़ती है।
इस मॉडल को हम सर्कुलर प्रारुप भी कहते है।
संचार के इस मॉडल को डेविड के. बरलो ने साल 1960 में प्रतिपादित किया।
जो कि निम्न है-
इस मॉडल में S-M-C-R का अर्थ है :-
S : Source (प्रेषक)
M : Message (संदेश)
C : Channel (माध्यम)
R : Receiver (प्रापक)
प्रेषक (Source) : जो किसी बात, भावना या विचार को किसी माध्यम से दूसरे तक पहुंचाता है उसे प्रेषक कहते हैं। संचार में प्रेषक का अहम योगदान है। प्रेषक बोलकर, लीखकर, संकेत देकर संचार कर सकता है।
संदेश (Message) : प्रेषक जो विचार या भावना दूसरे तक पहुंचाता है उसे संदेश कहते है। संदेश किसी भी रुप में शाब्दिक या अशाब्दिक संकेतिक इत्यादि रुप में हो सकती है। संदेष भाषाई दृष्टि से हिन्दी, अंग्रेजी, फारसी इत्यादि तथा चित्रात्मक दृष्टि से फिल्म, फोटोग्राफ इत्यादि के रूप में हो सकती है।
माध्यम ( Channel) : माध्यम की मदद से ही संचारक संदेश को प्रापक तक पहुंचता है। संचार के दौरान प्रेषक द्वारा कई प्रकार के माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है। प्रापक देखकर, सुनकर, स्पर्श कर, सुंघ कर तथा चखकर संदेश को ग्रहण कर सकता है।
प्रापक (Receiver ) : संदेश को ग्रहण करने में प्रापक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि प्रापक की सोच सकारात्मक होती है तो संदेश अर्थपूर्ण होता है। इसके विपरीत, प्रेषक के प्रति नकारात्मक सोच होने की स्थिति में संदेश भी अस्पष्ट होता है।
– इस मॉडल की सीमाएं या कमियां
इस संचार मॉडल में संचार प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है।
Shannon and weaver model please send me in Hindi mo.no 7088617790
ReplyDeleteMujhe bhi chahiyr
Deleteहिंदी में हमें भी चाहिए सर
Delete8709634978
मुझे सैनन और वेबर का , न्यूकाम्ब का एबीएक्स माडल, आस गुड का और बिलबर श्राम के सम्प्रेषण माडल चाहिए 9057160682
DeleteNewcomb model add kr do
ReplyDeleteMass media and indi democracy answer
ReplyDeleteGreat sir
ReplyDeletePDF kese download krna
ReplyDeleteHow to creat Blogger account
ReplyDeleteGood sir
ReplyDelete744081598
ReplyDelete